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कहानी

ईश्वर का द्वंद्व

मनोज रूपड़ा


1.

उस स्त्री का जीवन दो पहलुओं में बँटा हुआ था। उसने दो प्रेम किए और दो अलग-अलग पिताओं की दो अलग-अलग संतानों को जन्म दिया।

वह जब बहुत छोटी थी तब से जॉब और रोजर से प्रेम करती थी। वह बचपन से बिना किसी भेदभाव के अपनी सब चीजें दोनों को बराबर की तादाद में बाँटती थी चाहे वह फूल हो, चॉकलेट हो, बर्थ डे, न्यू ईयर या क्रिसमस की शुभकामनाएँ हों, चुंबन हो या उसका यौवन। उसके द्वारा दी जाने वाली चीजें उम्र के साथ-साथ बदलती रही। लेकिन वे चीजें कभी विषम संख्या में नहीं होती थी।

उसके जीवन की धाराएँ उन दो चिर प्रतिद्वंद्वियों के जीवन के सूत्रों से परस्पर गुँथी-बुनी हुई थी, जिससे वह एक साथ एक जैसा प्रेम करती थी।

जब वह रोजर से प्रेम करती थी तब जॉब की बाँहों में होती थी और जॉब को चूमते वक्त रोजर का चेहरा उसके सामने होता था।

जॉब और रोजर को एक दूसरे से कोई लगाव नहीं था। वे बचपन से ही एक दूसरे से लड़ते रहे थे। दोनों के बीच एक ऐसी स्पर्धा थी जो किसी भी पल चिनगारियों में बदल जाती थी। लेकिन जब वह उन दोनों का हाथ अपने हाथों में ले लेती थी तो चिनगारियाँ शांत हो जाती थीं।

उस स्त्री में कोई दैवीय शक्ति नहीं थी न ही उसके पास कोई जादू था। दरअसल वे दोनों किसी भी हालत में उसे खोना नहीं चाहते थे। उसका साथ पाने की चाहत इतनी प्रबल थी कि हर बार उसका हाथ थामते ही वे अपनी परस्पर शत्रुता भूल जाते थे।

जब वह चर्च में उन दोनों के बीच खड़ी होकर प्रार्थना करती थी तब उसके हृदय में दोनों के लिए एक समान शुभकामनाएँ होती थी। प्रार्थना पूरी होने के बाद आल्स्टर पर सिर झुकाने की बजाए वह बारी-बारी से दोनों को चूम लेती थी।

और अंत में वह ईश्वर की तरफ देखती थी, यह जानने के लिए कि जॉब और रोजर के लिए अभी-अभी उसने जो प्रार्थना की है, उसका कोई असर ईश्वर पर हुआ है या नहीं। ईश्वर जब तक जॉब और रोजर को उसके उस दिन के मैच में जीत दिलाने का आश्वासन नहीं देता था तब तक वह ईश्वर को टकटकी लगाए देखती रहती थी।

अपने दोनों प्रेमियों का हाथ थामे जब भी वह चर्च में आती थी, ईश्वर का दिल जोरों से धड़कने लगता था। वह अक्सर घबरा जाता था। क्योंकि यह एक ऐसा अगाध प्रेम था, जिसे वह ठुकरा नहीं पाता था और इस तरह के प्रेम के लिए उसके पास आदर्शों का कोई आवरण भी नहीं था, जिससे वह उसे दुनिया की नजरों से छुपा सके।

ईश्वर भयभीत और शर्मसार होकर वहाँ से भाग जाता था। उसे समझ नहीं आता था ऐसी प्रार्थनाओं को वह कैसे पूरा करे। अगर ऐसे संबंधों को वह आशीर्वाद देगा तो क्या इसका यह मतलब न होगा कि इसकी अनुमति देना है?

दुनिया के डर से ईश्वर चर्च से बाहर निकल आता था, लेकिन चर्च में की गई प्रार्थना, प्रार्थना में व्यक्त की गई भावना, बाइबिल में वर्णित रुथ और बोज की प्रेम कहानी और उन गीतों-कविताओं की पंक्तियाँ उसके दिमाग में गूँजती रहती थीं, जिसका एक-एक शब्द प्रेम और दयालुता से सराबोर था।

वह इन शब्दों से प्रेरित होकर कुछ करना चाहता था, लेकिन ईश्वर आखिरकार ईश्वर था। उसके दोनों हाथ धर्म और नैतिकता की कीलों से बिंधे हुए थे। वह प्रत्यक्ष रूप से कुछ भी नहीं कर सकता था, लेकिन ऐसा नहीं था कि वह अपनी इस मजबूरी के बहाने उनकी कोई मदद न करता हो। वह अप्रत्यक्ष रूप से उनके लिए कुछ न कुछ करता रहता था।

चर्च के पीछे जब वह अपने दोनों प्रेमियों को अपना प्रेम बाँट रही होती थी, तब वह वहाँ किसी अदृश्य दीवार की तरह खड़ा हो जाता था और किसी को भी वहाँ फटकने नहीं देता था।

फुटबाल के मैदान में रोजर को और बॉक्सिंग की रिंग में जॉब को जीत दिलाने के लिए वह ऐसे आसान अवसर उपलब्ध करवा देता था ताकि दोनों को जीत दिलाने के लिए प्रार्थना में व्यक्त की गई अभिलाषा पूरी हो।

फुटबाल की राष्ट्रीय टीम का जब चयन हो रहा था तो ईश्वर चयन समिति में शामिल हो गया और उसने शार्ट लिस्ट में रोजर का नाम लिखवा दिया।

नेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी की बॉक्सिंग रिंग में जॉब को भेजने में भी ईश्वर का योगदान था।

बाद में इस देश के एक सार्वजनिक उपक्रम ने अपने स्पोर्ट्स कोटे में जब दोनों खिलाड़ियों को जगह दी, तब इस उपक्रम का हेड स्पोर्ट्स ऑफिसर खुद ईश्वर था।

लेकिन रोजर और जॉब को ईश्वर की इस उदारता के बारे में कुछ पता नहीं था। वे मैच में अपनी संचित शक्ति का एक-एक अंश लगा देते थे ताकि उनके लिए की गई प्रार्थना व्यर्थ न जाए और उनकी प्रियतमा को ईश्वर के सामने नीचा न देखना पड़े।

रोजर की हर किक और जॉब के हर एक पंच में जो अंतर्निहित शक्ति लगती थी, वह प्रेम की शक्ति थी या ईश्वरीय शक्ति, इसे खुद ईश्वर भी नहीं जानता था। ईश्वर यह चाहता भी नहीं था कि कोई उसकी शक्ति को पहचाने या उसके द्वारा किए गए प्रयत्नों के लिए आभार प्रकट करे। वह तो बस किसी की प्रार्थना पूरी करने में लीन था, उतना ही, जितना कोई भक्त ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाता है।

प्रेम के वशीभूत होकर ईश्वर ने और भी कई जालसाजियाँ की। वह बिना कुछ सोचे-समझे उस स्त्री की सभी प्रार्थनाओं को पूरी करता रहा और बिल्कुल नाजायज तरीके से उसके प्रेमियों को लाभान्वित करते हुए उसने उन आदर्शों को भी खंडित कर दिया, जिन आदर्शों के लिए उसे ईश्वर माना जाता था।

एक समय बाद उसे महसूस होने लगा कि मानवीय भावनाओं में बहकर उसने ईश्वरीय विधान को गलत साबित कर दिया है। उसे जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह उदास हो गया। फिर बढ़ते हुए अपराध-बोध ने आखिर उसे कन्फेशन बॉक्स में खड़े होने के लिए मजबूर कर दिया।

और जब वह कन्फेशन बॉक्स में खड़ा था तब उसके सामने कोई पादरी नहीं था जिसके सामने वह अपने अपराधों को स्वीकार करता। उसके सामने वे सारी विगत सदियाँ मौजूद थीं और बर्बरता के वे सभी कालखंड, जब धर्म और राज्य-सत्ता ने मिलकर ईश्वर का दुरुपयोग किया था और अपने हितों के लिए लाखों लोगों को बर्बरतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया था।

धर्म और सत्ता के इस गठजोड़ ने अपनी शक्ति से एक समानांतर ईश्वर भी खड़ा कर दिया था, जो धर्म के आधार पर नहीं भ्रम के आधार पर खड़ा था। उसके द्वारा लोगों को इतना भ्रमित किया गया कि उस ईश्वर और असली ईश्वर के बीच फर्क करना मुश्किल हो गया और अब तो यह समझना भी मुश्किल है कि जीसस क्राइस्ट मुक्त व्यापार है या मुक्त व्यापार जीसस क्राइस्ट है।

दुनिया में जहाँ भी वे गए, जीसस क्राइस्ट को साथ लेकर गए और अपनी हर इच्छा को ईश्वर की इच्छा के रूप में प्रचारित किया। अगर ईश्वर की इच्छा है कि गरीब देशों के उत्थान के लिए उन्हें गुलाम बनाया जाए, तो ऐसा ही सही। अगर ईश्वर की इच्छा है कि चीन तक उसके उपदेश को पहुँचाने के लिए अफीम के कारोबार को अंग्रेजों के हाथों में दे दिया जाए तो यही सही। अगर ईश्वर की इच्छा है कि पिछड़े हुए देश भारत को सही रास्ते पर लाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत भेजा जाए, तो यही सही। अगर ईश्वर की इच्छा है कि पिछड़े हुए देशों के संसाधनों को हथियाने के लिए वहाँ की जमीनें मल्टी नेशनल कंपनी को लीज पर दे दी जाए, तो यही सही। अगर ईश्वर की इच्छा है कि किसी देश पर बम गिराया जाए, तो यही सही अगर ईश्वर की इच्छा है किसी देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया जाए, तो यही सही, अगर ईश्वर की इच्छा है...

असली ईश्वर ने अपनी खुली आँखों से देखा था कि मुक्त व्यापार उतना ही अटल है, जितने ईश्वर के आदेश। अगर ईश्वर इतना सर्वव्यापी नहीं होता तो साम्राज्य ही नहीं होता।

और तब कन्फेशन बॉक्स में खड़े ईश्वर ने सोचा कि अगर वह दूसरा ईश्वर एक बड़े साम्राज्य के हितों के लिए लाखों-करोड़ों लोगों को मरवा सकता है, तो मैं एक प्रेम करने वाली स्त्री की छोटी-छोटी खुशियों के लिए धर्म के विधान को क्यों नहीं तोड़ सकता?

2.

फिर सबकुछ यूँ ही चलता रहा। रोजर और जॉब ने अपने जीवन के हर कठिन टास्क को पूरा किया। वे अपने लक्ष्य के लिए भी लड़ते रहे और एक-दूसरे से भी।

बचपन से लेकर अब तक उन दोनों के बीच अपनी प्रेमिका को लेकर जो द्वंद्व चल रहा था, वह द्वंद्व अब एक युद्ध में बदल चुका था। उन्हें पूरा यकीन हो गया था कि जब तक उन दोनों में से किसी एक का अंत नहीं हो जाता, तब तक उस स्त्री के एकनिष्ठ प्रेम को पाना मुश्किल है।

इस द्वंद्व को खत्म करने का एक भी उपाय ईश्वर के पास नहीं था, लेकिन वह किसी भी हालत में इस द्वंद्व को खत्म करना चाहता था। उसके लिए अब यही सबसे बड़ा टास्क था।

उस स्त्री ने रोजर और जॉब को उसके जीते जी ऐसे कई विकल्प दिए थे, जो उनके द्वारा चुने गए एकमात्र विकल्प से कहीं ज्यादा सार्थक थे पर कोई भी विकल्प ऐसा नहीं था, जो दोनों को समान रूप से स्वीकार होता।

रोजर एक स्वाभाविक स्ट्राइकर था। उसे पोजीशन लेने की जबर्दस्त समझ थी और उसकी किक हमेशा निशाने पर होती थी।

जॉब भी एक स्वाभाविक फाइटर था और वह भी उन कमजोर क्षणों को पहचानने में माहिर था, जब घूँसा सीधे मर्म पर लगता था।

और एक दिन वही हुआ, जिसका डर था। रोजर की आखिरी किक और जॉब के आखिरी पंच ने आखिरकार इस द्वंद्व को समाप्त कर दिया।

ईश्वर के लिए वह क्षण एक तरह का काउंटर क्लोजर था। इस प्रेम में वह जिस जीवन-मूल्य को स्थापित करना चाहता था, उसमें असफल हो गया था।

3.

अब वह अधेड़ हो चुकी स्त्री दो कब्रों के बीच खड़ी है। अपने दाएँ और बाएँ हाथ में दोनों बेटों का हाथ थामे।

कब्रों में सोए उसके प्रेमी अपनी विद्वेष भरी भावनाओं के साथ जीवनभर एक-दूसरे से लड़ते रहे और दोनों ने एक साथ कब्र में जाने का विकल्प चुना था।

और तब उसने अपने बचे हुए जीवन और अपने बेटों को कुछ इस तरह आपस में मिला दिया था कि सिवाय प्रेम के कोई विकल्प नहीं बचा था।

हर साल एक निश्चित दिन वह अपने दोनों बेटों का हाथ थामे चर्च आती है। आज वही दिन है। वह आई है और ईश्वर उसे देख रहा है। वह दोनों बेटों के बीच खड़ी होकर प्रार्थना करती है फिर आल्स्टर पर सिर झुकाने की बजाय अपने दोनों बेटों को चूमती है। लेकिन अब ईश्वर को कोई भय नहीं होता बल्कि जब वह लौटती है, तो उसकी आँखों से आनंद-मिश्रित वेदना के आँसू बहने लगते हैं। यह अनुभव ईश्वर के लिए तर्कातीत है और शब्दों से परे तो है ही।

जब वह चर्च से निकलकर कब्रिस्तान की तरफ जाती है तो ईश्वर भी उसके पीछे-पीछे जाता है। वह झाड़ियों के पीछे छुपकर उसे देखता है और जब रोजर का बेटा जॉब की कब्र पर और जॉब का बेटा रोजर की कब्र पर फूल रखता है, तो ईश्वर अपने आँसू पोंछते हुए मुस्कुराने लगता है।


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